Friday, September 5, 2014

दूसरा पात्र... ''हेमा''

ये बात 18 दिसम्बर 2013 की है ...जिसे मैंने अधलिखा छोड़ दिया था ....हिम्मत नहीं हुई लिखने की ....पर आज  फिर उसका फोटो सामने आया और वो फिर याद आई .....
ज़िन्दगी रोजाना आसान नहीं होती पर ज़िन्दगी होती है न....इसलिए ......वैसी ही जीनी पड़ती है....आज फिर अफ़सोस उभर आया है पुराने दुखते दर्द की तरह और आज फिर मैं उदासी की कलम से ''उसे'' याद कर..... ज़िन्दगी लिख रही हूँ .....

(दिसम्बर 18 दिन के 3:30 बजे )  आज यूँही मन हुआ चलो, हेमा की ख़बर ली जाए ये लड़की न जाने कहाँ गायब रहती है। मैंने फ़ोन लिया और उसका नंबर लगाया....पर लगा नहीं...

मैंने फिर ऑफिस का नंबर लगाया। मन में सोच रही थी की जैसे ही वो फ़ोन लेंगी उसे खूब डाँटूंगी और जल्दी मिलने को बोलूँगी, उसकी आवाज़ जानती थी कैसे कहेंगी ''क्यूँ दीदी मिल गया टाइम आपको मेरे लिए '' इसलिए तैयार थी की जवाब में कहूँगी हाँ मुझे तो मिल गया पर लगता है तू मुझे भूल गयी है...

पर फ़ोन जब उसके बॉस ने लिया तो  मुझे अज़ीब लगा, मैंने पूछा ''क्या मैं हेमा से बात कर सकती हूँ ?'' आवाज़ आयी वो तो नहीं है अब .......मैंने पूछा क्या ऑफिस छोड़ दिया उसने ,कोई नंबरररर......... अरे नहीं वो तो……… अब इस दुनिया में नहीं रही,वो गुज़र गयी.......क्या ? क्या बोल रहे है आप ? मैंने चौंक कर पूछा.

''हाँ वो अब नहीं रही '' उन्होंने फिर बोला और मैं चुप हो गयी सब कुछ जैसे शांत हो गया सुन्न जैसा। फिर जैसे एक लहर दौड़ी की पूछ लूँ ''आप उसके घर में से किसी का नंबर दे सकते है क्या होगा आपके पास''। वो बोले हाँ शाम को या दो घंटे बाद बात करना दे दूँगा मैं बाहर हूँ। और मैंने फ़ोन रख दिया।

मुझे यकीन नहीं हो रहा था उनकी बात पर यही बात आ रही थी मन में की शायद इन्हे पता  नहीं होगा और हेमा अपने एग्जाम की तैयारियों में  होंगी, वो भी न  क्या वाहियात बहाना बनाया है कुछ और नही मिला क्या उसे। बहुत गुस्सा आ रहा था मुझे, मन में बस यही था की ये सब झूठ ही हो। पर न जाने क्यूँ मुझे बहुत डर लगने लग गया जैसे मेरी सोच दो तरफ़ा हो गयी और सोचने लगी की वो ठीक है पर न हुई तो ?

उफ्फ ...उस पल हेमा की बातें, उसकी हँसी, उसका चुलबुलापन सब मुझे याद आने लगा जैसे वो मेरे पास से गुज़र रही हो और वो मुझे नज़र आने लगी थी मेरे सामने, मुझे दीदी ……''मेरी डार्लिंग दीदी'' कहते हुए। मेरा दिल भर आया नहीं ये मुमकिन नहीं वो ऐसे नहीं जा सकती……नहीं ऐसा नहीं है वो ठीक होंगी।

मेरे पास उसका कोई और नंबर नहीं था और इसलिए सोचती रही क्या करू ? कैसे और किससे पता लगाऊं की वो कैसी है??? मैंने ऑनलाइन आकर उसका फेसबुक अकाउंट देखा, उसके दोस्तों को मैसेज करती रही शायद कहीं से उसका कुछ तो पता लगे, शायद किसी से उसकी बात हुई हो, शायद ……

पर कुछ नहीं मिला कोई मैसेज नहीं ......किसी का भी नहीं ........मैं कैसे अपने आप को झुठला रही थी, मैं ख़ुद नहीं जानती। वो जिंदादिल दिल लड़की ऐसे नहीं जा सकती उसको तो मुझ से मिलने घर आना था ...मेरे हाथ का बना खाना खाना था। ऐसा नहीं हो सकता ये सब उसकी शैतानी है बस .....जो वो अपने एग्जाम के लिए कर रही थी......हाँ यही हुआ है और कुछ नहीं मैं ख़ामख़ा परेशान हो रही हूँ।

बस ऐसे ही खुद से बातें करती रही यूँही ख्यालों में उसको डाटती, सुनाती और बुलाती रही......पर डर था मन में कि कहीं ये सुनी हुई बातें सच न हो जायें इसलिए मैं किसी से बात करने से पहले सोचती रही की ये सब पागलपन है उसका मैं नाहक़ ही दिल डुबायें जाती हूँ मैं नहीं बात करुँगी किसी से .......वो ठीक है बस .....मुझे पता है।

फिर भी कहते है न जो अटक जाए गले में तो न निगलते बनता है न उगलते बस ऐसे ही हेमा मेरे ज़ेहन में अटक आयी उसके अलावा कुछ नहीं सूझ रहा था मुझे बस उसकी खैर-ख़बर मिल जाये मैं यही कामना करती रही ।

बड़ी जद्दोजहत के बाद उसकी बहन का फ़ोन नंबर मिला और बड़ी ही हिम्मत के साथ....ठंडे पड़ते हाथों के साथ, दिल को थाम कर उसके घर फ़ोन किया। जैसे-जैसे फ़ोन की घंटी बजती गयी .....मेरी धक् धक् गले में आती गयी ....मन में एक बात चल रही थी की उसकी बहन फ़ोन उठायेगी और कहेगी ''अरे प्रियंका दीदी इसने सबको मुर्ख बनाया हुआ है और आप भी बन गये, लो आप ही बात कर लो और डाटों इसे ''  पर सोच थमी जब फ़ोन नहीं उठाया गया।

फिर कुछ देर में लगाया फ़ोन और इस बार घंटी जाते ही  ''हैल्लो कौन ?

''मैं प्रियंका बोल रही हूँ ......तुम सीमा हो न ? हेमा कहाँ है ? कब से उसका नंबर लगा रही हूँ पर लगता ही नहीं, बात कराओ उससे मेरी... हद है लड़की ने परेशान कर दिया......कहाँ-कहाँ नहीं फ़ोन घुमा दिया मैंने उससे बात करने के लिए.....कहाँ है वो ? ठीक तो है न ? बुलाओ उसे और ये क्या  घटिया मज़ाक किया है उसने .....मैंने उसके ऑफिस में फ़ोन किया तो वहाँ से बोले की ......वो अब इस दुनिया में नहीं है .....क्या है ये सब मज़ाक ?''

''दीदी ये मज़ाक नहीं है वो.......वो सच में.....अब नहीं है.......हम सब दिल्ली गए थे भाई के पास और पीछे घर में वो अकेली थी न जाने कैसे गैस लीक हो गयी और जब वो रसोई में गयी न जाने कैसे सिलेंडर फट गया और आग लग गयी.......वो पूरी तरह से जल गयी थी पड़ोस कि आंटी ने हमें फ़ोन कर बुलाया.... आंटी उसे जल्दी से हॉस्पिटल ले गयीं पर डॉक्टर ने भी कह दिया ......वो नहीं बचेगी बहुत जल गयी थी वो और 7 दिन तक हॉस्पिटल में इलाज के चलते वो........वो चली गयी। ''

मैं सुन्न हो गयी ....नहीं ....नहीं .....नहीं तुम झूठ बोल रही हो ....बुलाओ उसे .....मुझे हेमा से बात करनी है .....बुलाओ उसे ....मैं चिल्लाने लगी.....

''नहीं दीदी वो नहीं है अब ...सच में वो अब नहीं रही ....इस दुनिया में........'' मैं भी आपका नंबर तलाशती रही मुझे पता था वो आपको कितना मानती थी, मुझे बोली थी प्रियंका दीदी के घर जाना है दिल्ली से लौट आ तब चलेंगे, वो आपसे बहुत प्यार करती थी सब बताया था उसने मुझे बल्कि घर में सब जानते है आपको.......पर दीदी यही सच है .......वो अब नही रही।

मैं ख़ामोश हो गयी एक दम...........चुप बिल्कुल......

दीदी.....प्रियंका दीदी.......दीदी......हेल्लो ....दीदी .....

''मैं फिर बात करुँगी ......''  कह कर मैंने फ़ोन रख दिया ......उसकी तस्वीर अपने लैपटॉप में तलाशने लगी बहुत कम तस्वीरे थी उसकी मेरे पास। तस्वीर सामने आते ही मेरा रहा सब्र टूट गया मैं बिख़र के रो पड़ी।

उसकी बोलती शरारती आँखे, मुस्कुराते होठ, उसकी लम्बाई से ज्यादा लम्बे उसके बाल और उसकी चंचल छवि.......कोस रही थी मैं खुद को, क्यूँ उसको पहले फ़ोन नहीं किया .....क्यूँ उसको मिलने नहीं गयी, ये रोज़ की उबाऊ ज़िन्दगी से निकल क्यूँ कुछ पल मैंने उसके साथ नहीं बिताये .....क्यूँ मैं उस संग हंसी नहीं, रोई नहीं, क्यूँ उसे एक आखरी बार गले नहीं लगाया, क्यूँ उसे अपना प्यार नहीं दे सकी ....क्यूँ ......क्यूँ ?

ऐसा क्या व्यस्त होना की अपनों के लिए वक़्त न मिले, ऐसे दोस्तों और क़रीबियों के हम करीब न रह सके। बहुत गुस्सा आया खुद पर...... काश में उससे एक बार मिल पाती ......उसके गले लग उसको वो प्यार दे पाती जिसके लिए वो मुझसे अक्सर लड़ती थी, शिकायत करती थी।
मुझे मेरे होने का उस दिन बहुत अफ़सोस हुआ .....ऐसा भी क्या होना जो अफ़सोस से भरा हो, दुःख दें, अपने आप में शर्मिंदा करे। मैं उस दिन और उस रात हेमा को अपनी आँखों में, हाथों में, ज़ेहन में और ख्यालों में ले के बैठी रही उससे माफ़ी माँगती कभी, कभी उसको प्यार करती, उसके लिए दुआएं करती और रोती भी।

उस शाम लगा जैसे आज फिर में थोड़ी और ख़ाली हो गयी ..... मेरा एक और सबसे क़रीबी मुझसे हमेशा के लिए दूर हो गया और वो ऐसा गया है की फिर वापस न आएगा, कभी आवाज़ नहीं देगा फिर कभी नहीं मुस्कुराएगा। उस दिन फिर दिल बहुत भारी हो गया मेरे ख़ालीपन से और ज़ेहन में थोड़ी और जंग लग गयी सवालों की, अफ़सोस और ख्यालों की।

पूरी रात हेमा को याद करती रही तब से जब से हम मिले थे।

साल 2002 .....मेरे स्कूल में उसका नया दाख़िला था वो ग्यारवीं से मेरे स्कूल में आयी थी और आते ही उसने एन.सी.सी में भी दाखिला ले लिया। मैं उस वक़्त उसकी सीनियर थी इसलिए उन जैसे सभी नये कैडेट को सिखाती थी। हेमा शुरू से ही मुझे पसंद करती थी, मुझे कॉपी करती थी।  जब कभी क्लास से वक़्त मिलता मेरे पास आ जाती थी मिलने के लिए। उस वक़्त उसकी तरह ही कई दूसरी लड़कियाँ भी मुझे पसंद करती थी इसलिए कभी मैंने हेमा को सीरियस नहीं लिया और यही बात उसे पसंद नही थी।

वो मुझसे अक्सर इस बात को ले की शिकायत करती की मैं उसी टाइम नहीं देती. उसकी शिकायत उस वक़्त में गम्भीर नहीं लिया करती थी पर जब हेमा मेरे साथ एन.सी.सी कैंप गयी तब उसके स्नेह को मैंने जाना. मैं कैंप में भी सीनियर थी और बाकी सभी कैडेट्स की ज़िम्मेदारी मुझ पर थी मसलन उनका खाना, उनकी ड्रेस, उनकी क्लासेज, उनका टाइम-टेबल और बाकी सभी रोज़ की गतिविधियाँ मुझे ही देखनी पड़ती थी. उस वक़्त अपनी जिम्मेदारियों को सम्भालते हुए मैं अक्सर अपना खाना-पीना भूल जाती थी और देर रात तक पुरे कैंप एरिया का चक्कर लगा कर अपने सीनियर को रिपोर्ट दे कर वापस अपने कैंप में आती थी. उस वक़्त हेमा मेरे लिए खाना लाती, मुझे पानी और मेरे कपड़े संभालती थी. बीच-बीच में हँसाती रहती और शैतानियाँ कर के देर रात तक कैंप के 12 दिनों तक मेरा साथ दिया करती थी.

एक बार कैंप के दौरान मैंने उसे परेड के चलते कमांड देने को कहा पहले तो वो मानी नहीं पर जब मैंने आर्डर दे कर कहा तो मान गयी और कमांड देने लगी. उसकी आवाज़ नहीं निकल रही थी पर उसने गले को कई बार साफ़ कर कमांड पूरी की और फिर वापस कतार में खड़ी हो गयी. मैंने उसके लिए कुछ नहीं कहा और फिर बाकी के कैडेट्स को एक-एक कर बुलाने लगी .

शाम को जब कैंप में मनोरंजन के कार्यक्रम रखे जाते है उस वक़्त मैंने देखा वो चुप थी और किसी से भी कोई भी बात नहीं कर रही थी मैंने उसे बुलाया और पूछा - हेमा, क्या बात है .... चुप हो ....क्या परेड के दौरान मैंने तुम्हें कमांड देने के लिए बुलाया इसलिए तुम दुखी हो गयी हो या मुझसे नाराज़ हो ?...
-- उसने कुछ कहा तो नहीं पर सर हिला के जता दिया की ऐसा नहीं है .... मैंने फिर पूछा- कुछ बोलो भी...चलो ठीक है आईंदा में तुम्हें नहीं कहूँगी कमांड देने के लिए ....अब बोलो ....
-- इस बार वो बोली नहीं ...रो पड़ी ... मैंने उसे गले लगते हुए कहा ..अरे तुम इतनी सी बात पर रो पड़ी अच्छा बेटा कुछ नही कहूँगी पर रोना बंद करो ....
--उसने इशारे से मुझे बताया की उसका गला बंद हो गया है और कोशिश करने पर भी उसकी आवाज़ नहीं निकल रही और दर्द भी बहुत है ...

मैं परेशां हो गयी ...उफ़ ये क्या हो गया ...मैंने बिना अभ्यास के उसको कमांड देने के लिए बोल दिया और यही तो कहीं उसके गले की तकलीफ न बन गया हो ....उफ़ ये क्या कर दिया मैंने ....पर ये तो सिखाने का तरीका है मैं नहीं करती तो कोई और करता क्यूंकि ये तो सिखाना ही है और ऐसे ही सीखते है सभी ....पर .....उफ़ ....

कैंप के डॉक्टर्स से मैंने सलाह ली और उसको दवा दी ....अगले 7 दिनों तक उस पर विशेष ध्यान दिया और तब उसी हल्की आवाज़ सुनने को मिली ....उस दिन और उस कैंप के बाद से हेमा मेरे बहुत नजदीक आ गयी वो मुझे बड़ी बहन का दर्जा देने लगी और मुझे भी वो अपनी छोटी बहन सी प्यारी लगने लगी थी.

मेरा कॉलेज खत्म होने को था और ये बात हेमा को दुःख दे रही थी. वो कॉलेज के अंतिम दिनों में मेरे पास ज्यादा आने लगी...कभी स्लैम बुक कभी डायरी मुझे देती भरने के लिए, कुछ अपने बारे में मेरे से लिखवाने के लिए.

हमारी फैर्वल के दिन वो बहुत रोई थी और रोते-रोते कहती जाती थी - ''मुझे पता है अब आप मुझे भूल जाओगी, आपके नये दोस्त और कई मेरी जैसी मिल जाएँगी....फिर आप मुझे भूल जाओगी .''
मैं उसे समझाती रही पर वो मानी नहीं ....उसे विश्वास दिलाया कि हम मिलेंगे और बातचीत होती रहेगी पर वो अपनी जिद पर रही.    
कुछ ही दिनों बाद हमारा कॉलेज खत्म हुआ.

ये अमूमन होता ही है की जिस कॉलेज में बड़ी बहन पढ़ती है उसी में छोटी बहन भी और यही मेरे साथ भी था. मेरी छोटी बहन अभी भी उस कॉलेज में पढ़ रही थी और हेमा को भी जानती थी और यही तार मेरे कॉलेज से जाने के बाद में हेमा को मुझसे जोड़ा हुआ था. हेमा अक्सर मेरे लिए ख़त लिख कर मेरी बहन को दे दिया करती थी और ये सिलसिला उसके कॉलेज खत्म होने तक चलता रहा.

कॉलेज ख़त्म होने के बाद बहन भी अलग, हेमा भी अलग और मैं भी अलग.
कई बार हेमा को याद करती, उसके दिए ख़त पढ़ती और उसके फ़ोन नंबर पर कॉल करती रही पर कहीं से कुछ भी न हासिल हुआ और साल गुज़रते रहे. मैंने पढाई ख़त्म की, जॉब की और बीते दिनों को संभाल बस अच्छी यादों की तरह हेमा को अपने पास रखती रही.

2012 में जब फेसबुक अच्छी तरह से चलन में आ गयी थी तब एक दिन मेरी बहन ने मुझे बताया की उसके पास हेमा का मैसेज आया है ''मेरे लिए'' ... मैं खुश हो गयी और तुरंत उसके मैसेज को फॉलो कर उसको ऐड कर लिया और उससे सबसे पहले उसका फ़ोन नंबर माँगा और फिर तुरंत फ़ोन किया .
- हेल्लो...हेमा...
- हाय दीईईईईईइ ........ ओहो मैं बता नहीं सकती कितनी खुश हूँ आपकी आवाज़ सुन कर....मेरे तो कान ही तरस गये थे आपको सुनने के लिए...सोचा ही नहीं था कभी फिर आपको सुन पाउंगी ...ओ दीईईईईई .... लव यू सो सो मच ..... एंड मिस यू टू ....कैसे हो आप ?...
- (उसकी बातों से मैं हंसने लगी थी) हाँ बेटा मैं अच्छी हूँ ....तू कैसी है ...कहाँ है ....मैं भी खुश हूँ वापस तुझे पा कर....कहाँ थी अब तक ...कहीं कोई खबर नहीं ....गायब हो गयी थी एक दम ....ठीक तो है न ?....
- हाँ दी...मैं एक दम ठीक और मस्त हूँ ....मिलूँगी तब बताउंगी सब ....अभी बोलो कब फ्री हो ...मैं कब आऊं आपसे मिलने.... मैं मर रही हूँ आपको देखने के लिए....
- जब तेरा मन हो तब आजा ....मुझे भी तुझे देखना है .... जल्दी आजा ....

और उसके कुछ मिनटों बाद तक हम बातें करते रहे और आगे के प्लान बनाते रहे....10 साल बाद भी उसका प्यार उतना था या शायद ज्यादा हो गया था. उसकी आवाज़ में वही खनक, वही खिलखिलाती हंसी और उसके जुमले जो वो सिनेमा से चुराती थी अभी भी बात करने के लहजे में शामिल थे ....मुझे याद है जब में कैंप में ज्यादा व्यस्त हो जाया करती थी तब हेमा मुझे पुरानी हिंदी फिल्मों के हीरो की तरह रोमांटिक डायलॉग सुनाया करती थी जैसे मैं उसकी प्रेयसी और वो मेरा प्रेमी हो .....नाटकबाज़ थी पूरी ....बहुत हँसाती थी .... और यही मुझे उसमे सबसे ज्यादा पसंद था.

कुछ दिनों तक फ़ोन पर बतियाने के बाद आखिर वो दिन आ ही गया जब हेमा मिलने आई. आते ही दी ...दी ....दी चिल्लाती रही और झूम-झूम कर मुझे गले लगाती रही उसकी खुशी उसका प्यार उस दिन मेरे पुरे घर में फैल गया गया था.....कुछ देर तक मेरे हाथ को अपने हाथ में ले के बैठी रही और फिर बोली - कैसी हो आप दी ?
मैं उसके सवाल से हंसने लगी -पागल तेरे सामने हूँ ....कैसी लग रही हूँ ?
- हम्म हो सामने पर ....पहले जैसी नहीं लग रहीं ....सच कहो !
- अरे सच ठीक हूँ .....तू बता ... कैसी है ...लाइफ में क्या चल रहा है ...और घर में सब कैसे है ...करती क्या है ?
- घर में सब ठीक....जॉब है और लाइफ में कुछ नहीं सिवाए बोरियत के ....और हाँ मैं ठीक हूँ ....बस
- अच्छा बता क्या लेगी ....कॉफ़ी तेरी पसंदीदा ?
-हम्म छोड़ो दी ....कॉफ़ी अब नहीं पीती ...आप बस यहाँ बैठो मेरे पास और मुझे कुछ नहीं चाहिये ...

उस दिन उन कुछ घंटों में हेमा ने मुझे बहुत ख़ुशी दी पर मैंने महसूस किया हेमा मुझसे कुछ छुपा रही थी...उसकी हंसी नकली लगी ...कई बार जब मैंने उसकी आँखों में झाँका तो उसने झटक कर खुद को यहाँ वहाँ में बहानो में व्यस्त कर लिया .....उसकी आँखों में नमी थी और वो कुछ छुपा रही थी बस अब यही बात मुझे जाननी थी उससे ....

फिर आये दिन उससे बात होती रही और मैं बातों-बातों में उससे उसकी ''नमी में छुपी गमी'' का कारण जानने का प्रयत्न करने लगी और फिर कुछ दिनों बाद मैंने सीधे से उसे पूछ लिया - हेमा, कुछ पूछूँ बताएगी ?
- हाँ दी पूछो न ....बताउंगी ....क्या बात है ?
- मैंने नोट किया है तुझे .... इसलिए तू ...झूठ न बोलना ....न मुझसे छुपाने की कोशिश करना ....
- हाँ हाँ दी ....पर पूछो तो ....क्या पूछना चाहती हो ...
-हम्म ....मैंने ये महसूस किया है की तुम कुछ छुपाती है ....अचानक हंसती है और फिर एक दम से चुप..तेरी आँखों में देखा है मैंने ....लगता है अभी रो देगी .... कोई बात है तो कह मुझे .....कुछ दबा रखा है तूने इस हंसी के पीछे ...बता मुझे ....क्या है ऐसा जो तुझे परेशां कर रहा है ....बोल ..
(हेमा चुप हो गयी .....और फिर रो दी  और फिर बोली )
- दी मैं कल आउंगी शाम को आपसे मिलने तब ......... ओके ?
-हाँ ठीक है ...पर रोना नहीं ....और रोना है तो मुझसे मिल कर ....मेरे गले लग के रो लेना ....ठीक है ?
-हम्म्म .....ठीक है ....आती हूँ फिर कल ....बाय दी ....लव यू ...
(और उसने फ़ोन रख दिया )

अगले दिन शाम को जब वो आई तो आते ही मेरे गले लग गयी...न कुछ कहा ...न कुछ कहने वाली थी ...लगा बस जैसे बिखरने को थी इसलिए मेरे स्नेह की डोर में खुद को पिरोना चाहा रही थी ताकि फिर .....सहज हो ये शाम पहन सके और उसकी ओट ले कर अपने मन के बंद दरवाज़ों को खोल दे ....कुछ पल चैन की साँस लेने के लिए .....

मैंने उसे उसकी तसल्ली तक गले लगाये रखा और फिर उसे उतनी ही सहजता से अपनी बात कहने को कहा.....मैं इस बात का बिलकुल अंदाज़ा नहीं लगाया था की उसकी ज़िन्दगी बुरे ...नहीं शायद बेहद बुरे अनुभव से गुज़री होगी ....पर उसकी बात सुनने के बाद मुझे ताज्जुब से ज्यादा दुःख हुआ ....बहुत दुःख हुआ ....

हेमा के 12वीं पास करने के बाद यानि स्कूल खत्म होने के बाद ही उसके लिए रिश्ते आने लगे थे जिसके बाद उसके परिवार ने हेमा पर दवाब भी बनाया की वो शादी कर ले पर ....हेमा शुरुआत से लव-मैरिज को तवज्जों देती आई थी और वही करना भी चाहती थी लेकिन परिवार के अड़ियल रवैये को देखते हुए उसने अपनी इच्छा को मार लिया ......

उसके जानने वालों में उसके पिता के दोस्त का बेटा हेमा को पसंद करता था और कई सालों से हेमा लिए अपने मन में शादी का सपना लिए हुए था...हेमा ने कभी इस और ध्यान नहीं दिया क्यूंकि उसे उसका मिस्टर राईट अपनी मर्ज़ी का चाहिये था न की अपने परिवार की मर्ज़ी का .....पर
उस लड़के ने अपनी इजहार-ए-मोहब्बत का ऐसे-ऐसे नायब तरीके हेमा को दिखाए की हेमा उसके प्यार में पड़ गयी और अब उसके साथ रिश्ता बनाने को राज़ी हो गयी थी.

हेमा भी हर लडकी की तरह उसके प्यार और अपने भावी भविष्य के सपने देखने लगी थी उसने उसके प्यार को देखते हुए उसके साथ शुरूआती समझोते भी करना शुरू कर दिए थे. राज (वो लड़का) ने हेमा को हर वो ख़्वाब देखने की वजह दी जो शायद हर प्रेमी अपनी प्रेमिका को देता है .....हेमा और राज का साथ और उनका 'जोड़ा' परिवार के सभी सदस्यों को और बाकी लोगो को भी बहुत पसंद था . कह सकते है की ये रिश्ता एक दुसरे के लिए ही बना था ........शायद ...

लेकिन कुछ दिनों के बाद ही धीरे-धीरे राज ने हेमा पर रोक-टोक करना शुरू कर दिया...उसका ऑफिस जाना, घर आना, घूमना और कपड़े पहनना सभी पर राज़ की नज़र रहने लगी. कुछ दिनों बाद नोबत ये आ गयी की राज़ हर बात पर हेमा पर शक करने लगा और उसके ऑफिस के बाहर चक्कर लगाने लगा.
हेमा बहुत ही खुले विचारों कि पर संस्कारी लडकी थी उसने कभी ये नहीं सोचा था की उसके साथ इस तरह का व्यवहार होगा....अहिस्ता-अहिस्ता राज़ की बंदिशें बढती गयीं और हेमा घुटती जा रही थी .....इस बीच हेमा ने ये भी महसूस किया की राज़ उससे नजदीकियां बढ़ाने को विवश करने लगा था पहले-पहल तो हेमा को लगा की शायद वो मज़किया लहजा है पर दिवाली वाली रात हेमा को अकेला पा कर राज़ ने जो हरकत की उससे हेमा के विश्वास को धक्का लगा...

हेमा इस बात से परेशान रहने लगी की एक तरफ राज़ उससे नजदीकियां बढ़ाने को कहता और दूसरी तरफ उसको कहीं आने जाने पर रोकने लगता .....हेमा को लगा शायद उससे गलती हो गयी उस रिश्ते के लिए हामी भर कर ......उसने कई बार अपने परिवार को राज़ के बारे में बताने की कोशिश कि पर उसके परिवार की आँखों पर राज़ ने विश्वास का अँधा पर्दा डाला हुआ था.....हेमा जब भी कुछ कहती उसकी माँ को लगता की हेमा बहाना कर रही है शादी न करने के लिए और उसको अनसुना कर दिया जाता रहा ..... हेमा बहुत दुखी हो गयी इतना की वो डिप्रेशन में चली गयी और उसकी दवाईयां लेने लगी.....

हेमा राज़ से परेशां थी लेकिन इतने दिनों से चले आ रहे इस रिश्ते में कहीं न कहीं हेमा का प्यार भी पनपने लगा था जिसकी वजह से भी हेमा राज़ की गलतियों और उसकी हरकतों को बर्दाश्त कर रही थी. हेमा को उसके ही दोस्तों द्वारा इस बात का भी पता चला की राज़ उसे धोखा दे रहा है वो उसके रहते किसी और लड़की के साथ रिश्ते में है और सिर्फ रिश्ते में ही नहीं वो उस लड़की के साथ कई दिनों से उसके ही घर में रह रहा है पर हेमा को इन सुनी-सुनाई बातों पर यकीं न हुआ.

हेमा को राज़ पर विश्वास था की वो उसे इस हद तक धोखा नहीं दे सकता भले ही वो जो भी गलत करता आया है उसके साथ पर फिर भी ये सब जो उसने सुना वो सच नहीं हो सकता और यही सारी बात उसने खीज़ कर अपने दोस्त पर निकाल दी की वो आइन्दा कभी उससे राज़ के बारे में बकवास न करे.

पर शायद हेमा का प्यार और विश्वास इसलिए मजबूत बना ताकि वो टूट सके....नहीं...तितर-बितर हो कर...बिखर सके....

मुझे याद है ....ये सब बताते हुए हेमा कई बार फूट-फूट कर रोई....बार-बार यही कहती रही ....दीदी ऐसा मेरे साथ क्यूँ हुआ ....मैंने क्या किया था ....वो मेरे पास आया था ...इतना यकीं दिलाया अपने प्यार के लिए कि मैं समझने लगी थी की यही मेरी दुनिया है ....बस एक वही है मेरा ....सिर्फ वही है ...और रो देती .....मैं उसको गले लगाती उसके गम को अपनी आँखों से बहा लेती और उसे सँभालने लगती .....

एक दिन हेमा ऑफिस में आई ही थी की उसका दोस्त (जो उसे राज़ के लिए सतर्क होने को कहता था) वो उसके पास आया और तुरंत उसे आपने साथ चलने को कहा ....
हेमा ने पहले तो उसे टालना चाहा पर दोस्त के समझाने पर वो उसके साथ चली गयी. कई बार दोस्त से उसके आने की वजह पूछती रही पर दोस्त ने यही कहा की -तुम चलो बस ....आज तुम्हें सच से मिलवाना है ....तुम्हारी आंखे खोलनी हैं ....
हेमा संदेह में रही और सोचती रही....

हेमा के घर के पास जहाँ राज का घर था वही आ कर हेमा के दोस्त ने हेमा को ला खड़ा किया और कहा-'हेमा तुम्हें शायद बहुत दुःख होगा पर ये तुम्हारे जीवन के लिए बहुत जरुरी है ....इसलिए मैं तुम्हे इस सच्चाई से और दूर नहीं रख सकता ....मैंने पहले भी कई बार तुम्हे इस बारे में बताना चाहा पर तुम ......तुम मुझे गलत समझती रहीं .....मैं तुम्हारा दोस्त हूँ और वही रहना भी चाहता हूँ ...लेकिन ये कभी नहीं चाहता की तुम अपनी ज़िन्दगी बंद आँखों से और धोखे में जियो .....चलो मैं तुम्हे सब बताता हूँ'.....

हेमा और उसका दोस्त राज के घर की ओर चल दिए . हेमा को राज के घर के बाहर रोक कर उसने इशारे से हेमा को घर के अन्दर झाकने को कहा. हेमा ने बहुत डरते हुए जैसे ही घर में झाँका उसके होश उड़ गये और वो कुछ कहती उससे पहले ही वहां से रोते हुए भाग गयी. हेमा का दोस्त उसके पीछे-पीछे उसको रोकता हुआ....आवाज़ देता हुआ उसके पीछे भगा. हेमा आपने घर आ गयी थी और कमरा बंद कर रोने लगी. उसके बाद उसने किसी से कोई बात नहीं की ...और रात यूँही गुजार दी ...उसके ज़हन में वो दृश्य छाया रहा जो उसने राज के घर देखा...

रात के 2:30बजे होंगे जब उसका मैसेज मिला मुझे ''दीदी मैं बहुत परेशां हो गयी हूँ अपनी ज़िन्दगी से...जो सोचा....जो चाहा वो कभी नहीं मिला पर इस बात का गम नहीं ...लेकिन धोखा मिलेगा ये भी नहीं सोचा था न चाहा था ....मैं टूट गयी हूँ दीदी ....खत्म हो गयी हूँ''....

उसका मैसेज पढ़ कर में घबरा गयी और उसी समय उसको कॉल किया पर हेमा ने फ़ोन उठाया नहीं और पलट के मैसेज किया '' दीदी कल बात करुँगी अभी मुझमे हिम्मत नहीं ...प्लीज .... ''

मैंने उसको लिखा '' ठीक है बेटा...समझती हूँ ...जो भी बात है तुम बस याद रखना की शांति से हर बात का हल निकल आता है इसलिए जल्दबाजी और गुस्से में कोई भी कदम न उठाना...तुम शांत रहो और सुबह मिलो मुझसे या बात करो ओके ....मैं तुम्हारे साथ हूँ हमेशा ...याद रखना ....''

उसकी बातों को मन से लगाये मैं किताब पढ़ती रही और यूँही रात गुज़र गयी....

अगली सुबह मैं जागी और आँख खुलते ही हेमा का ख्याल आया तुरंत उसे कॉल किया....मेरे दो बार मिलाने पर उसने फ़ोन नहीं उठाया तो मैं परेशान हो गयी.....अभी 8 बजे थे ...मैंने तय किया कि उसके पास जाना चाहिये और बस जल्दी ही तैयार होने लगी ....पर न जाने क्यों मन में अजीब बेचैनी चलती रही ....जैसे कुछ ठीक नहीं था ....कुछ गलत...कुछ बुरा होने को था ....मैं डर रही थी ....हेमा के लिए ....

वो घंटे बड़े कठिन बीत रहे थे ....हेमा का कॉल नहीं आया तो चिंता और बढ़ गयी. मेरे घर से निकलने से पहले ही हेमा का कॉल आ गया बोली- दीदी मैं आती हूँ शाम तक, आपके पास.... और फ़ोन रख दिया ...

मेरा इंतज़ार और बढ़ गया...मन में सवालों के घेरे बन रहे थे जिनमें सोच उलझती जाती थी .....बस शाम हो तो कुछ सुलझे .....

उस दिन शाम को मैंने ऐसे याद किया जैसे .....मुझ पर लदा बोझ और उससे दुखते मेरे कंधों को शाम आते ही राहत मिलनी थी....मैं घर के बाहर उसका इंतज़ार करने लगी ....कुछ देर बाद जब हेमा आई.  गेट पर आते ही मुझे देख पहले उसने अपने आंसू पोंछे फिर मेरी माँ को मुस्कुरा कर नमस्ते किया और बहन से औपचारिक बात की.....मैंने उसके धीरज को देखा जो उसकी आँखों के पोरों पर आते-आते ......वापस लौट जाता था ....इतनी हिम्मत हेमा में ......मुझे ताज्जुब हुआ ये सोच कि ये वही लड़की है जो बेसब्री से हर बात का जवाब चाहती थी, ये वही लड़की है जो किसी गलत बात के लिए कहीं भी किसी से भी लड़ जाया करती थी और क्या ये वही लड़की है जो मेरे लिए हमारी प्रिंसिपल से लड़ गयी थी.
समझती हूँ .....ये वक़्त हर किसी को ज़िन्दगी जीने के लिए सब्र देता है ताकि इतनी लम्बी और सख्त ज़िन्दगी जीते हुए इन्सान को कम तकलीफ हो ....और इस वक़्त हेमा का सब्र नजर आ रहा था.

सभी से साधारण बातचीत के बाद मैं हेमा को अपने कमरे में ले आई ....कुछ देर हम दोनों ही शांत रहे बस मैं उसको देख रही थी और वो यहां-वहां.... फिर जब उसकी नज़र मुझ तक आई तब उसका सब्र टूट गया और वो रो पड़ी ....मैंने आगे बढ़ उसको संभाला .....हेमा मेरे गले लग खूब रोई ....मैंने भी उसे उसके उफनते दर्द को बह जाने देने को कहा ...... कुछ देर बाद उसे शांत कर मैंने उससे बीती रात उस पर गुजरी मनोस्थिति के बारे में पूछा...

हेमा ने फिर वही से शुरू किया .....बीती रात से ....
-दीदी सब ख़त्म हो गया मैं जिसे प्यार समझती रही वो ....वो धोखा था ...मेरा विश्वास ...मेरा भरोसा ...मेरा सालों का प्यार ....सब .....सब धोखा निकला .....
मैंने उसे टोकते हुए पूछा- ऐसा क्या हुआ हेमा ...इतनी बोझल बातें क्यूँ कर रही है....क्या हुआ है ..ठीक से बता ...

-दीदी .....आपको याद होगा मैंने कभी यूँही आपसे ज़िक्र किया था अपने दोस्त राज का ....
-हाँ ....हेमा ...मुझे याद है ....
-वही ....वही है वो धोखेबाज़ ......वो मुझसे शादी करने के वादे कर किसी और लडकी के साथ ....उसके बिस्तर पर .....और हेमा रोने लगी .
-हेमा ....संभाल खुद को ....ऐसे कैसे वो ये सब कर सकता है ...तुझे शायद किसी ने गलत बताया है ....
- नहीं दीदी ....ये मैंने खुद अपनी आँखों से देखा है .....उसके घर में .....उसके बिस्तर पर ...कोई और लडकी और वो ....साथ-साथ .....मैं नहीं जानती थी राज ऐसा करेगा मेरे साथ ....मेरे घरवालों के सामने इतना आज्ञाकारी बनने वाला लड़का ...इस कदर घटिया हो सकता है, मुझे अंदाज़ा भी नही था ....  आपको पता है दीदी उसने न सिर्फ मुझे बल्कि मेरे सारे घरवालों को धोखा दिया .....मेरे घर शादी का रिश्ता लेके आया और मुझसे प्यार का इकरार कर आज ये गुल खिला रहा है ......मुझे समझ नहीं आ रहा है मैं क्या करू .....किस को बताऊँ ...कैसे बताऊँ .

--तुमने अपने घर में बात की .....राज से पहले बात करो उसने ये सब क्यूँ किया .....जवाब मांगो उससे ...अपने परिवार को बताओ उसकी सच्चाई .....

--नहीं दीदी ....ऐसा नहीं कर सकती ...परिवार कि हालात ऐसी नही की ये सब सहन कर सके ....पर अब ये रिश्ता तो होगा नहीं ....ये तय है ...मैं सब ख़त्म कर दूंगी .

--हम्म्म .....पर एक बार अपने परिवार को सब सच बता दो ...यकीं करो सब तुम्हारा साथ देंगे ...

--- नहीं दीदी आप नहीं जानती ...राज ने किस तरह से  मेरे परिवार को अपने विश्वास में ले रखा है...मैं कुछ भी कहूँगी तो माँ को लगेगा की बहाने बना रही हूँ और पापा .....वो तो कहेंगे की मैं नाटक कर रही हूँ ताकि शादी न करनी पड़े ....आपको नहीं पता राज से रिश्ता होना ....मुझ पर दबाव है शुरू से ...वो तो समय के साथ मैंने इसे अपना लिया वरना ये मुझे पसंद नहीं था ....दो सालों तक राज मेरे आगे-पीछे फिरता रहा तब मैंने उससे बात की ....और इसने भी मुझे ये यकीन दिलाया कि ये मुझे चाहता है ......पर अब जब इसका धोखा मेरे सामने है मैं कैसे इसे अपना लूँ दीदी ......नहीं ......बिलकुल नहीं ......मैं इससे हर रिश्ता ख़त्म कर दूंगी ...बिलकुल खत्म .

--हम्म्म ....तू सही है अपनी जगह ....बिलकुल सही ...ऐसे इन्सान के साथ कोई रिश्ता रखना ही बेफकुफी होगी ....पर हेमा मेरी बात मान आंटी-अंकल से बात तो कर एक बार ....तू कहे तो मैं करू .

--नहीं दीदी ....अब मुझे ही सब करना होगा.

हेमा के इस निश्चय को देख मैं दंग रह गयी ....एक बार को लगा ...कल की चंचल, शैतान और चुलबुली हेमा आज अचानक से समझदार हो गयी ....बीती रात ने हेमा की सारी मासूमियत और उसकी चंचलता छीन ली...इतना सख्त समय गुज़रा हेमा पर कि वो कुछ ही घंटों में बड़ी हो गयी .

कुछ समय बाद हेमा को समझा कर मैंने उसे विदा किया और आने वाले कल के लिए उसके सच्चे इरादों कि दुआ की.

मैं जानती थी कि उसे रोज़ कॉल करुँगी तो वो उसी दर्द की टीस को बार-बार महसूस करेगी इसलिए मैंने उसे समय दिया ताकि वो अपने निर्णय पर फिर से सोचे ....समझे और तब कुछ करे, इसलिए मैंने कुछ दिनों तक उसे कॉल नहीं किया और मैं अपने कार्यों में व्यस्त हो गयी.

कुछ हफ्तों बाद हेमा का कॉल आया जिसमें उसने अपनी नई शुरुआत के बारे में बताया की वो बी.एड कर रही है और पढाई में व्यस्त हो गयी है . मुझे ख़ुशी हुई कि उसे जल्दी ही अपने गम को भुलाने और उस पर लगाने को मरहम मिल गया है.
और यूँही वक़्त गुज़रता गया ...हेमा के कॉल आते और मुझसे मिलने आने को कहती रहती ...मैं भी उसके प्यार को समेटती रही और अगली क़िस्त के लिए हामी भी भरवाती रही . इस तरह कुछ माह बीते न मैं उससे मिल सकी न वो ही बस ....कॉल पर ही हम दोनों बातचीत करते रहे .....

14 अक्टूबर 2013 को दिन में हेमा का कॉल आया और हमेशा की तरह उस दिन भी हेमा ने मुझसे मिलने की इच्छा ज़ाहिर की. मैंने भी कहा हाँ हेमा ...जल्दी ही मिलते है ...तू अपने एग्जाम ख़त्म कर और मैं भी फ्री हो कर मिलती हूँ ....कहीं घुमने चलेंगे .....इस वादे के साथ हमारी बात खत्म हुई .

उस दिन के बाद हेमा का एक, दो मैसेज आये पर 17 अक्टूबर के बाद उसका कोई मैसेज या कॉल नहीं आया. मुझे लगा हेमा अपने एग्जाम में बिज़ी है इसलिए उसे समय नहीं मिल पता होगा और यही सोच मैंने भी उसको कॉल नहीं किया .

पर जब दिल नहीं माना तब 18 दिसम्बर को उसे कॉल किया और .........तब वो जा चुकी थी...इस दुनिया से ....मुझसे दूर ....सबसे दूर ...हमेशा...हमेशा के लिए ....

मैं हेमा को कभी नहीं भूल पाउंगी और इसकी एक नहीं कई वजह हैं. हेमा को मैंने जैसे पाया फिर खोया और फिर जिस तरह से पा कर अब हमेशा के लिए खो दिया वो अनोखा और अविस्मर्णीय है.
इस सिलसिले को मैं क्या नाम दूँ ....समझ नहीं आता ....वो जब मिली ऐसे मिली जैसे दुनिया की सारी मस्तियाँ वो अपने संग समेट लायी हो जिन्हें किश्तों में लुटा कर मुझे खुश करती रही.
हम जब बिछड़े तब मैं और वो मुझे ...हम दोनों एक दुसरे को ढूंढा करते थे .....मुझे याद है जब हम दोनों फिर मिले थे तब किस कदर अपनी कोशिशे गिनाई थी एक दुसरे को .....और अब जो खोयी है तो ...मैं कहां तलाश करूँ उसे ....समझ ही नहीं आता ....

उसका यूँ जाना मुझे आज तक भ्रम में रखा हुआ है कि वो यहीं है ....मुझसे मजाक किया उसने ....कभी किसी दिन कॉल करके मुझे चिड़ायेगी ....खूब हँसेगी ..... पर अब एक साल हो चूका है और अब तक उसका कॉल नहीं आया ......मैंने उसकी बहन को अपना नंबर इसलिए दिया ताकि कभी मेरा भ्रम सच हो जाये .....कभी ...काश वो मुझे कॉल करे और मुझे ''मेरी डार्लिंग दीदी'' कहे ......

ये ज़िन्दगी हर उस पल में बदल जाती है जब हम सोचते है की अब सब ठीक है ....सब सही चल रहा है ...और आज नहीं तो कल हम जीवन के जद्दोजेहद से बीतते दिनों में से कुछ वक़्त निकाल अपने अपनों को याद कर लेंगे ....मिल लेंगे...पर नहीं ....हम जो सोचें और जो चाहे वो हमें हमारी जरूरतों के हिसाब से मिल जाये ये मुमकिन ही नहीं .....

मैं नहीं जानती ये ज़िन्दगी कब-कब मुझे रुलाएगी....तरसाएगी बीते पलों कि याद दिलाते हुए लेकिन इतना जानती हूँ कि जीते रहने के लिए और जीने के लिए सबक देती है .....यही ज़िन्दगी रोज़ाना.



Wednesday, September 3, 2014

पहला पात्र... ''उषा दीदी''

मुझे लगता है अपनी ज़िन्दगी में एक औरत सपनों से कहीं ज्यादा बहाने गड़ती है.....जीवन की शुरुआत से ले कर ज़िन्दगी के अंत आने तक हर पड़ाव पर उसके पास कुछ हो न हो पर बहाने जरुर होते है....

मिलिये उनसे जिनके बहानो की मैं कायल हूँ ....जिनके बहाने भावनाओं से ओतप्रोत, खूब सारे प्यार में डूबे हुए है और जिनमें जीने की ललक नज़र आती है पर अपने लिए नहीं .....दूसरों के लिए ....

उषा दीदी मेरी एकलौती दोस्त, बड़ी बहन, माँ और बहुत कुछ .....शायद सब कुछ...

उम्र कम तो नहीं पर ज़िन्दगी के तजुर्बें इन्हें अपनी उम्र से कहीं ज्यादा है....... इनके आलावा मैंने आज तक कोई ''महापॉजिटिव सोच'' वाला इन्सान नहीं देखा.... कितना भी बुरा हो जाये दीदी उसे ''चलो जाने दो'' कह कर नार्मल कर देती हैं .....

इनकी सबसे बुरी आदत है अपना ख्याल न रखना और सारी दुनिया की चिंता अपने सर पर लेके घूमना....पुरे परिवार को एक पिता की तरह संभाल के रखा हुआ है......पर जब पिता का साया नहीं रहा तो ''उषा'' कुछ कम हो गयी....पर सिर्फ कम हुई रुकी नहीं ....

वैसे तो जब से मैंने उन्हें देखा है तबसे व्यस्त और ज़िन्दगी से बराबरी करते देखा है पर अंकल के जाने के बाद से दीदी सुस्त हो गयीं और लापरवाह भी ....
लेकिन उनके बहाने और अपनी तरफ से उनकी बेपरवाही बढती गयी ....अभी कुछ महीनों से बीमार रह रही है कभी कुछ -कभी कुछ लगा ही रहता है और उसके वावजूद दीदी बराबर घर और ऑफिस दोनों देखती हैं .....

घर में भाई-भाभी उनके २ छोटे बच्चे और माँ है पर उनके लिए ....कोई नहीं है ....उनको अच्छा लगता है की उषा कमाती है और जब नहीं कमायेगी तब उषा बोझ लगेगी ..... और इसलिए दीदी कभी थकती नहीं.....उन्हें पता है उनकी थकान उतारने के लिए किसी के पास दो घड़ी का समय नहीं ....

उनकी बीमारी अब ज्यादा ही उनके चेहरे पर नज़र आने लगी ....मैं तो हमेशा ही उनके पीछे पड़ी रहती हूँ पर इस बार मेरे गुस्से ने उन्हें मजबूर कर दिया खुद को डॉ के पास ले जाने के लिए ....और हुआ वही जिसका मुझे अंदेशा था .....कई सारे टेस्ट के बाद दी को ''ओवरी सिस्ट'' नामक बीमारी है ( जिसे कैंसर की शुरुआत कहा जाता है) ये पता लगा .....

दीदी की अभी तो शादी भी नहीं हुई और इस उम्र में ऐसा ....यही सोच-सोच कर मैं दुखी होती रही ...जानती थी उषा दीदी भी बहुत परेशां होगीं पर उनके सामने अपनी चिंता ज़ाहिर करना उन्हें और परेशां करने जैसा था ....समझ नहीं आ रहा था क्या करें ....
हमेशा की तरह शाम को हम दोनों ने बात की .....

मेरा पहला सवाल उनसे हर बार यही होता है- ''ठीक हो दी?''
- अरे हाँ ....मुझे क्या हुआ है , मैं ठीक हूँ एक दम .....
- हाँ अच्छा है आप ठीक ही रहो
- हम्म फिर .....
- क्या फिर ?
- क्या ?
- बहुत बुरी हो आप ....कितनी बार आपको कहा अपना ख्याल रखो पर आप ....बहुत बुरी हो ...
- ( हँसते हुए) क्या तुम भी ... ठीक तो हूँ ...ये सब तो डॉ लोगो की बातें है ....कुछ नहीं हुआ है....
- हाँ अभी भी आपको यही लगाता है जानती हो न क्या हुआ है आपको ....जानती हो न उसके बारे में ?
- हाँ हाँ जानती हूँ ..... तो क्या हुआ ... ठीक है कोई बात नहीं ... दवाईयां ले लुंगी और क्या ....ज्यादा हुआ तो ऑपरेशन बस ....
- हाँ ....आपके लिए इतना सब भी कुछ नहीं है ....है न ? क्यूँ अपना ख्याल नहीं रखती हो आप ?
- अरे बाबा ...कुछ नहीं हुआ है ऐसा ....देखो ...छोटी सी बीमारी है वो ठीक हो जाएगी .... वैसे भी अभी मेरे पास टाइम नहीं है की मैं डॉ को अपना समय दूँ ....मम्मी का ऑपरेशन हुआ है तो उनको दिखाना है फिर से डॉ को, थोड़ी तकलीफ है उनके पैरों में फिर से और भाई के भी पेट में पथरी की प्रॉब्लम हो गयी है तो उसका और बच्चों को स्कूल छोड़ने का काम अब मेरा हुआ .....और तुम तो जानती ही हो ...सारा दिन भाभी कितना काम करती है तो सुबह की साफ़-सफाई में ही करुँगी अभी भी ..... और ये बीमारी वीमारी कुछ महसूस तो होती नहीं है मुझे...ये सब बकवास है मैं नहीं मानती .... ये महीना निकल जाये फिर सोचूँगी कुछ ........

( मैं दीदी की ये सारी बात सुन रोने लगी और फिर फ़ोन काट दिया और ये दीदी  समझ गयीं थी की मैं रोने लगी हूँ ....कुछ देर बाद मैंने फिर फ़ोन किया) दीदी पहले बोलीं इस बार...
- हम्म रो ली मैडम ......
- हम्म्म .... आपको अपनी तो कोई फिक्र नहीं कम से कम उनकी करो जो आपको प्यार करते है ....
- हम्म्म करती तो हूँ ...देखो तभी तो डॉ को मौका मिला गया अपना बिल बनाने का ....
- चुप करो....मेरी बात नहीं सुनती हो आप ...अपने मन की करती हो ... जाओ बात न करो मुझसे ...
- अच्छा ठीक है , नहीं करुँगी .... कब करूँ फिर ये बता दो ...(हँसने लगती है फिर )

और इस तरह उस दिन से आज तक दीदी अपनी बीमारी टालती आ रही है ....हाँ एक दो बार खुद से डॉ की सलह ली और दवा भी पर ...अपने लिए दीदी सीरियस अभी भी नहीं है .... उनके लिए घर...बच्चे...भाई...भाभी...माँ और हाँ उनका ऑफिस सबसे प्रिय है .... जैसे एक दिन रुक गयीं तो शायद दुनिया रुक जायेगी .....

सिर्फ यही बात नहीं उन्होंने न जाने कितने मसले अपनी ज़िन्दगी के बहानो में गवां दिए ....उनकी उम्र में लडकियाँ बच्चों की माये बन आधी उम्र गुज़ार चुकी होती है शादीशुदा ज़िन्दगी की ....और दीदी .... उनके लिए ...आंटी की दवा...बच्चों के होमवर्क....घर की साफ़-सफाई....भाई के साथ घर की ज़िम्मेदारी शेयर करना ज्यादा जरुरी है .....

इन सब के बाद भी अगर उनसे कहो ....चलो दी आज ब्रेक ले लो ...कहीं घूम आये ...तो उनके बहाने सुनिए ...
--घुमने ....क्या घुमने...रोज़ तो घुमती हूँ मैं ....घर से ऑफिस ...ऑफिस से घर ...रास्ते भर सब देखती हूँ जाती हूँ ....वही शहर ...वही मंदिर ...वही लोग ....क्या देखना उनका और क्या घूमना ....और आज घर हूँ तो बच्चों के प्रोजेक्ट बनाने है ....मम्मी को मामा के घर ले जाना है और शाम को गुन्नू को होमवर्क भी तो कराउंगी .....देखो कहाँ वक़्त है .....

कभी कभी जब दीदी चुप और शांत होती है तब पूछती हूँ ....क्यूँ इतना बहाने बनाती हो आप ? कहीं आने जाने में .....थोडा अपने को वक़्त देने में .....क्यूँ नहीं जीती जैसे सब जीते हैं ? उनका जवाब कम बहाना ज्यादा होता है मेरे सवाल से पीछा छुड़ाने का .....

--- क्या बहाना ....शरीर है नहीं ऐसा की कुछ नया खरीदूं और पहनू .... जो दाग दिए है ऊपर वाले ने उसके साथ सजना सवरना ....तुक नहीं है ..... और फिर किस के लिए ये सब .... सबको सुन्दर लडकी चाहिये और मैं .....तुम जानती तो हो ....... अच्छी लडकी होना और सुन्दर लडकी होना अलग है ....तुम तो अच्छे से जानती हो इस बात को ..... फिर कहाँ जाना ? कैसा जीना ?

दीदी क्यूँ इतने बहाने बनाती हो आप .... तो खीज कर कहतीं है -''नहीं बहाने नहीं है ये प्रियंका ....ये सच्चाई है ...और यही ज़िन्दगी है ....मेरी रोज़ाना की ज़िन्दगी ..... खुद को मैं इस सच के सामने रखती हूँ और जीती हूँ ताकि झूठ और किसी मोह का साया जब भी मुझ पर पड़े ....ये सच मुझे उससे दूर रखे .... ताकि जो हो नहीं सकता उसकी कमी न लगे ....और ज़िन्दगी यूँही चलती रहे ..... समझीं तुम ?

हाँ समझ गयी दीदी .... और मुझसे बेहतर कोई नहीं समझेगा आपको ..... सोचती हूँ कैसे गुजारती होंगी दीदी हर दिन यूँ संकोच के साथ, सब्र के साथ....भुलावे के साथ .... आसान तो नहीं है अपनी ज़िन्दगी फिर भी ....न जाने कैसे जी रही हो आप ये .....ज़िन्दगी रोज़ाना !!!!