Wednesday, September 3, 2014

पहला पात्र... ''उषा दीदी''

मुझे लगता है अपनी ज़िन्दगी में एक औरत सपनों से कहीं ज्यादा बहाने गड़ती है.....जीवन की शुरुआत से ले कर ज़िन्दगी के अंत आने तक हर पड़ाव पर उसके पास कुछ हो न हो पर बहाने जरुर होते है....

मिलिये उनसे जिनके बहानो की मैं कायल हूँ ....जिनके बहाने भावनाओं से ओतप्रोत, खूब सारे प्यार में डूबे हुए है और जिनमें जीने की ललक नज़र आती है पर अपने लिए नहीं .....दूसरों के लिए ....

उषा दीदी मेरी एकलौती दोस्त, बड़ी बहन, माँ और बहुत कुछ .....शायद सब कुछ...

उम्र कम तो नहीं पर ज़िन्दगी के तजुर्बें इन्हें अपनी उम्र से कहीं ज्यादा है....... इनके आलावा मैंने आज तक कोई ''महापॉजिटिव सोच'' वाला इन्सान नहीं देखा.... कितना भी बुरा हो जाये दीदी उसे ''चलो जाने दो'' कह कर नार्मल कर देती हैं .....

इनकी सबसे बुरी आदत है अपना ख्याल न रखना और सारी दुनिया की चिंता अपने सर पर लेके घूमना....पुरे परिवार को एक पिता की तरह संभाल के रखा हुआ है......पर जब पिता का साया नहीं रहा तो ''उषा'' कुछ कम हो गयी....पर सिर्फ कम हुई रुकी नहीं ....

वैसे तो जब से मैंने उन्हें देखा है तबसे व्यस्त और ज़िन्दगी से बराबरी करते देखा है पर अंकल के जाने के बाद से दीदी सुस्त हो गयीं और लापरवाह भी ....
लेकिन उनके बहाने और अपनी तरफ से उनकी बेपरवाही बढती गयी ....अभी कुछ महीनों से बीमार रह रही है कभी कुछ -कभी कुछ लगा ही रहता है और उसके वावजूद दीदी बराबर घर और ऑफिस दोनों देखती हैं .....

घर में भाई-भाभी उनके २ छोटे बच्चे और माँ है पर उनके लिए ....कोई नहीं है ....उनको अच्छा लगता है की उषा कमाती है और जब नहीं कमायेगी तब उषा बोझ लगेगी ..... और इसलिए दीदी कभी थकती नहीं.....उन्हें पता है उनकी थकान उतारने के लिए किसी के पास दो घड़ी का समय नहीं ....

उनकी बीमारी अब ज्यादा ही उनके चेहरे पर नज़र आने लगी ....मैं तो हमेशा ही उनके पीछे पड़ी रहती हूँ पर इस बार मेरे गुस्से ने उन्हें मजबूर कर दिया खुद को डॉ के पास ले जाने के लिए ....और हुआ वही जिसका मुझे अंदेशा था .....कई सारे टेस्ट के बाद दी को ''ओवरी सिस्ट'' नामक बीमारी है ( जिसे कैंसर की शुरुआत कहा जाता है) ये पता लगा .....

दीदी की अभी तो शादी भी नहीं हुई और इस उम्र में ऐसा ....यही सोच-सोच कर मैं दुखी होती रही ...जानती थी उषा दीदी भी बहुत परेशां होगीं पर उनके सामने अपनी चिंता ज़ाहिर करना उन्हें और परेशां करने जैसा था ....समझ नहीं आ रहा था क्या करें ....
हमेशा की तरह शाम को हम दोनों ने बात की .....

मेरा पहला सवाल उनसे हर बार यही होता है- ''ठीक हो दी?''
- अरे हाँ ....मुझे क्या हुआ है , मैं ठीक हूँ एक दम .....
- हाँ अच्छा है आप ठीक ही रहो
- हम्म फिर .....
- क्या फिर ?
- क्या ?
- बहुत बुरी हो आप ....कितनी बार आपको कहा अपना ख्याल रखो पर आप ....बहुत बुरी हो ...
- ( हँसते हुए) क्या तुम भी ... ठीक तो हूँ ...ये सब तो डॉ लोगो की बातें है ....कुछ नहीं हुआ है....
- हाँ अभी भी आपको यही लगाता है जानती हो न क्या हुआ है आपको ....जानती हो न उसके बारे में ?
- हाँ हाँ जानती हूँ ..... तो क्या हुआ ... ठीक है कोई बात नहीं ... दवाईयां ले लुंगी और क्या ....ज्यादा हुआ तो ऑपरेशन बस ....
- हाँ ....आपके लिए इतना सब भी कुछ नहीं है ....है न ? क्यूँ अपना ख्याल नहीं रखती हो आप ?
- अरे बाबा ...कुछ नहीं हुआ है ऐसा ....देखो ...छोटी सी बीमारी है वो ठीक हो जाएगी .... वैसे भी अभी मेरे पास टाइम नहीं है की मैं डॉ को अपना समय दूँ ....मम्मी का ऑपरेशन हुआ है तो उनको दिखाना है फिर से डॉ को, थोड़ी तकलीफ है उनके पैरों में फिर से और भाई के भी पेट में पथरी की प्रॉब्लम हो गयी है तो उसका और बच्चों को स्कूल छोड़ने का काम अब मेरा हुआ .....और तुम तो जानती ही हो ...सारा दिन भाभी कितना काम करती है तो सुबह की साफ़-सफाई में ही करुँगी अभी भी ..... और ये बीमारी वीमारी कुछ महसूस तो होती नहीं है मुझे...ये सब बकवास है मैं नहीं मानती .... ये महीना निकल जाये फिर सोचूँगी कुछ ........

( मैं दीदी की ये सारी बात सुन रोने लगी और फिर फ़ोन काट दिया और ये दीदी  समझ गयीं थी की मैं रोने लगी हूँ ....कुछ देर बाद मैंने फिर फ़ोन किया) दीदी पहले बोलीं इस बार...
- हम्म रो ली मैडम ......
- हम्म्म .... आपको अपनी तो कोई फिक्र नहीं कम से कम उनकी करो जो आपको प्यार करते है ....
- हम्म्म करती तो हूँ ...देखो तभी तो डॉ को मौका मिला गया अपना बिल बनाने का ....
- चुप करो....मेरी बात नहीं सुनती हो आप ...अपने मन की करती हो ... जाओ बात न करो मुझसे ...
- अच्छा ठीक है , नहीं करुँगी .... कब करूँ फिर ये बता दो ...(हँसने लगती है फिर )

और इस तरह उस दिन से आज तक दीदी अपनी बीमारी टालती आ रही है ....हाँ एक दो बार खुद से डॉ की सलह ली और दवा भी पर ...अपने लिए दीदी सीरियस अभी भी नहीं है .... उनके लिए घर...बच्चे...भाई...भाभी...माँ और हाँ उनका ऑफिस सबसे प्रिय है .... जैसे एक दिन रुक गयीं तो शायद दुनिया रुक जायेगी .....

सिर्फ यही बात नहीं उन्होंने न जाने कितने मसले अपनी ज़िन्दगी के बहानो में गवां दिए ....उनकी उम्र में लडकियाँ बच्चों की माये बन आधी उम्र गुज़ार चुकी होती है शादीशुदा ज़िन्दगी की ....और दीदी .... उनके लिए ...आंटी की दवा...बच्चों के होमवर्क....घर की साफ़-सफाई....भाई के साथ घर की ज़िम्मेदारी शेयर करना ज्यादा जरुरी है .....

इन सब के बाद भी अगर उनसे कहो ....चलो दी आज ब्रेक ले लो ...कहीं घूम आये ...तो उनके बहाने सुनिए ...
--घुमने ....क्या घुमने...रोज़ तो घुमती हूँ मैं ....घर से ऑफिस ...ऑफिस से घर ...रास्ते भर सब देखती हूँ जाती हूँ ....वही शहर ...वही मंदिर ...वही लोग ....क्या देखना उनका और क्या घूमना ....और आज घर हूँ तो बच्चों के प्रोजेक्ट बनाने है ....मम्मी को मामा के घर ले जाना है और शाम को गुन्नू को होमवर्क भी तो कराउंगी .....देखो कहाँ वक़्त है .....

कभी कभी जब दीदी चुप और शांत होती है तब पूछती हूँ ....क्यूँ इतना बहाने बनाती हो आप ? कहीं आने जाने में .....थोडा अपने को वक़्त देने में .....क्यूँ नहीं जीती जैसे सब जीते हैं ? उनका जवाब कम बहाना ज्यादा होता है मेरे सवाल से पीछा छुड़ाने का .....

--- क्या बहाना ....शरीर है नहीं ऐसा की कुछ नया खरीदूं और पहनू .... जो दाग दिए है ऊपर वाले ने उसके साथ सजना सवरना ....तुक नहीं है ..... और फिर किस के लिए ये सब .... सबको सुन्दर लडकी चाहिये और मैं .....तुम जानती तो हो ....... अच्छी लडकी होना और सुन्दर लडकी होना अलग है ....तुम तो अच्छे से जानती हो इस बात को ..... फिर कहाँ जाना ? कैसा जीना ?

दीदी क्यूँ इतने बहाने बनाती हो आप .... तो खीज कर कहतीं है -''नहीं बहाने नहीं है ये प्रियंका ....ये सच्चाई है ...और यही ज़िन्दगी है ....मेरी रोज़ाना की ज़िन्दगी ..... खुद को मैं इस सच के सामने रखती हूँ और जीती हूँ ताकि झूठ और किसी मोह का साया जब भी मुझ पर पड़े ....ये सच मुझे उससे दूर रखे .... ताकि जो हो नहीं सकता उसकी कमी न लगे ....और ज़िन्दगी यूँही चलती रहे ..... समझीं तुम ?

हाँ समझ गयी दीदी .... और मुझसे बेहतर कोई नहीं समझेगा आपको ..... सोचती हूँ कैसे गुजारती होंगी दीदी हर दिन यूँ संकोच के साथ, सब्र के साथ....भुलावे के साथ .... आसान तो नहीं है अपनी ज़िन्दगी फिर भी ....न जाने कैसे जी रही हो आप ये .....ज़िन्दगी रोज़ाना !!!!


2 comments:

  1. यह मित्रता आपकी निधि है। सुखदायी मित्रता का अत्यंत रोचक वर्णन। भगवान दी को सुखी रखें।

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    1. बहुत बहुत आभार सर ....ईश्वर उन्हें सुख दे ...यही कामना है मेरी भी ...

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