Monday, December 22, 2014

तीसरा पात्र...विजय 'दोस्त'

ज़िन्दगी के बारे में कयास लगाना शायद सांप-सीढ़ी के खेल की तरह है जहाँ जीत के करीब पहुँचते ही एक गलत चाल वापस खेल कि शुरुआत पर ले आती है और हमें फिर से खेल खेलना पड़ता है या हार मान लेनी पड़ती है. जब हम ये सोचते हैं कि अब सब ख़त्म हो गया है....कुछ नही बचा जीने के लिए तब कभी-कभी हमारा चुना गलत रास्ता भी हमें भटकाते हुए सही रास्ते तक ले आता है.

ये लगभग सभी कि ज़िन्दगी में होता है .....और हाँ ...मेरे साथ भी हुआ ..... 
जीवन के मुश्किल दिनों से गुज़रते हुए जब मन निराश था, सोच गहरे अन्धकार में डूबी हुई थी, प्रयासों ने हाथ खड़े कर दिए थे और हिम्मत मुझे छोड़ कर जा चुकी थी तब मेरे भटकते रास्तों पर मुझे आशा का एक दीया मिला जो अपनी मद्धम रौशनी के बावजूद मुझे रास्ता दिखाता रहा .....और जो आज तक दिखा रहा है ....

मेरे इस अद्भुत साथी का नाम है विजय ....मेरे सबसे बड़े और सबसे निराले दोस्त ...विजय निकोर.
4 सितम्बर 2013 को उनसे हुई साधारण बातचीत हुई और हमारी बातचीत का कारण बनी हम दोनों की चहेती ''अमृता प्रीतम'' जी . एक ब्लॉग पर विजय सर द्वारा लिखे अमृता जी और उनकी मुलाकात के संस्मरण को पढ़ मैं उत्सुकतावश विजय सर से वार्तालाप करने लगी. मुझे अमृता जी से ना मिल पाने का बेहद दुःख है और जब मैंने जाना की विजय सर अमृता जी से कई बार मिले है तो मुझे लगा जैसे मेरे पास मौका है अमृता जी को करीब से जानने का, समझने का और इसी जिज्ञासा के साथ मैं विजय सर से जुड़ गयी. 

हमारे बीच बातों का सिलसिला अमृता जी से शुरू होता और उन्ही पर आ कर खत्म हो जाता. मैं अमृता जी के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जानना चाहती थी और विजय सर अपनी यादों को मेरे द्वारा ताज़ा करते रहे. इस तरह समय बिता और हम अच्छे दोस्त बन गये. 

जीवन में कई ऐसे उतार-चड़ाव आये जब विजय सर ने मुझे दोस्त, पिता और एक शिक्षक कि तरह समझा और समझाया. जब भी मेरा मनोबल कमज़ोर पड़ता विजय सर उसे अपनी सकारात्मक बातों से फिर से प्रबल बना देते. मेरे हर नए कदम पर विजय सर का साथ और उनका आशीर्वाद मुझे मिला. 

उनकी लेखनी की मैं हमेशा से कायल रही हूँ पर उससे भी ज्यादा उनके स्वभाव, उनके स्नेह, सरलता और ईमानदारी की कयाल हूँ. विजय सर ने कई बार मुझे अपनी लेखनी से चौंकाया है. जब भी मुझे लगता ये रचना उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना है उसी पल उन्होंने मुझे अपनी दूसरी रचना के द्वारा चकित किया है और हर बार की बात हो चली है. 

विजय सर अपने छोटे से परिवार के साथ पिछले कई सालों से विदेश में रह रहे है उनकी जीवनसंगिनी नीरा जी भी उन्ही की तरह सौम्यता और स्नेह से भरी हुई हैं. दोनों का प्यार आज भी किसी नव-दम्पति की तरह ही जवां है और यहाँ मुझ तक सात समंदर पार तक महकता है. 

मैं इसे अमृता जी का आशीर्वाद मानती हूँ कि उन्होंने मुझे अपने बहाने से विजय सर से मिलाया और एक नई राह पर चलना सीखा दिया. अक्सर हम दोनों अमृता जी को याद कर उन्हें धन्यवाद देते है की वो हमारी इस अनोखी दोस्ती कि वजह बनी .

हमारी दोस्ती को जानने वाले सोचते हैं कि हम दोनों के बीच किस तरह का सामजस्य है जो हमारी दोस्ती को बनाये रखे हुए है क्योंकि शायद उनका ये मानना है कि दोस्ती बराबरी में होती है. ये बराबरी उम्र की, समझ की, लाइफ स्टाइल की और सोच की होती है. लेकिन मैं ये नहीं मानती न ये मानने लायक बातें हैं . मेरा मानना है आपसी समझ और सहजता किसी भी रिश्ते को मजबूती दे सकती है फिर वो हमारी जैसी अनोखी दोस्ती ही क्यूँ न हो .

विजय सर मेरे पिता की उम्र से भी बड़े है और मैं उनकी बेटी की उम्र से भी बहुत छोटी हूँ लेकिन फिर भी हमारी आपसी समझ हमें एक दुसरे के बराबर रखती है.  मेरे लिए विजय सर की दोस्ती इस ज़िन्दगी का उपहार है जो मुझे हर दिन नया और नया तजुर्बा कराता है....हर दिन थोड़ा और समय पर विश्वास करना सिखाता है. 

विजय सर कहते है 'समय सब ठीक कर देगा...कर देता है...बस अपनी कोशिश करते रहो...जीत यक़ीनन तुम्हारी ही होगी'. और उनका यही विश्वास मुझमे ऊर्जा भरता है. 

ज़िन्दगी किसी के लिए आसान नहीं है. ये हम पर है की हम इसे या तो ढोते रहे या उत्साह के साथ व्यतीत करें. कभी- कभी हमें कुछ लोग मिल जाते है जो हमारी ज़िन्दगी को आसान बनाने में मददगार साबित होते हैं ....जैसे मुझे मिले विजय सर यानी मेरे सबसे बड़े और सबसे अनोखे दोस्त.

ज़िन्दगी के गुज़रे तमाम दिनों में से कुछ दिन और साल मुझे याद रहेंगे और शायद हम सभी को याद रखने भी चाहिये क्योंकि हर पल, हर लम्हा करवट लेती .......ज़िन्दगी रोज़ाना.