Thursday, November 5, 2015

सातवां पात्र: मेरी बेहद करीबी पर अनजान लड़की

मैं उसे तब से जानती हूँ जब से मैंने खुद को जाना है. मेरे लिए वो आईने की तरह है पर फिर भी वो अनजान है. जब मुझे लगता है मैं उसे जानती हूँ, समझती हूँ, तभी वो मेरे यकीन को झुठला देती है. मन और दिल की बहुत गहरी लेकिन साफ़, उसका चेहरा उसके दिल का हाल सबसे पहले बताता है. उसकी शायद एक ही खामी है कि वो मूडी है पर ऐसी भी नहीं दूसरे की ख़ुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है.

कभी-कभी लगता है वो बहुत खुशमिजाज इन्सान है, जो की वो है लेकिन उसके अन्दर कुछ गहरा है जो उसे अकेला रखता है. वो ख़ुशी तलाशने के लिए बहाने गड़ती है लेकिन हार कर अपने मन के कमरे में कैद को कर कविताएं लिखती है. ऐसी कई बातें हैं जो उसके बारें में बताई जा सकती हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों से मैं जिस तरह से उसको देख और सुन रही हूँ, जिससे लगता है उसके जीवन में फिर कुछ उथल-पुथल मची है.

उसने कई बार रिश्तों में धोखा खाया है. इसी से जाना जा सकता है कि वो भोली है. प्रेम के नाम पर उम्मीदों की गठरीयां जो उसने ढोई हैं शायद उसने उसे थका दिया है. जीवन के उस पड़ाव पर है वो आज, जो मृत्यु से दो पड़ाव पीछे है और जहाँ वो बिलकुल अकेली है. खून के रिश्तों ने बिना मतलब कभी याद नहीं किया इसलिए अपने मोह को त्याग, बहुत सालों बाद वो उनसे दूर हो पाई लेकिन उसका मोह....उसे अलग होने ही नही देता.

मुझे लगता है ऐसे लोग जो रिश्तों के पीछे भागते हैं उसने रिश्ते हमेशा दूर होते जाते हैं. ऐसा ही कुछ इस लड़की के साथ है. शादी होने से कुछ समय पहले ही उसको धोखा मिला और शादी न हो सकी. जिसके बाद लम्बे समय तक अपने-आप से लड़ती रही और सब छोड़ कर फिर से खुद को समेट वापस जिंदगी जीने का प्रण किया. 3 साल के लम्बे समय के बाद उसने फिर कुछ सपने देखे और किसी ने फिर उसके एहसासों को सहलाया. इस बार जो मिला वो सच्चा था, शायद उसे इन्सान कहना ही ठीक होगा.

लेकिन परिवार से मिल रही अवहेलनाओं से त्रस्त हो कर उसने उस लड़के को अपना वर्तमान और अतीत बताते हुए उससे आगे की सम्भावनाओं को जाना. वो  लड़का तो चाहता ही था उसके साथ रहना इसलिए उसने प्रेम का नहीं जीवनसाथी बनाने का प्रस्ताव रखा. वो लड़की सब छोड़ कर उस लड़के के विश्वास के सहारे उसके शहर जा पहुंची.

उस लड़की ने कभी औसत जिंदगी नहीं जी थी. हालाकि वो हर परिस्थति के अनुसार खुद को ढाल लेती थी फिर भी उसके लिए अकेले नये शहर में, सिर्फ एक व्यक्ति पर यकीन कर रहना बड़ा ही हिम्मत का काम था. उसने किराया का कमरा लिया, थोड़ा बहुत सामान लिया, नीचे बिस्तर लगाया और कुछ रसोई की व्यवस्था कर अपनी नई ज़िन्दगी का आगाज़ किया.

धीरे-धीरे समय बीतता रहा. वो लड़का और ये लड़की करीब आते रहे और कुछ समय बाद दोनों ही एक-दूसरे में खो गए. ज़िन्दगी में बस यही कमी थी शायद, कोई बेहद प्यार करने वाला एक इंसान जो उसे वैसा प्यार दे जैसा वो चाहती थी. वो लड़का उसका बहुत ख्याल रखता. बहुत सारी असुविधाओं के बाद भी वो उसे खुश रखने की कोशिश करता.

फिर धीरे-धीरे  उस लड़के के शौक लड़की के सामने आने लगे. लड़की का परिवार पढ़ा-लिखा, अपर-मिडिल क्लास फॅमिली की तरह था जिसमें कोई भी किसी भी तरह का शौक नहीं करता था, जिसकी वजह से लड़की ने कभी अपने आस-पास ऐसा होता देखा ही नहीं लेकिन लड़के के बढ़ते शौकों को देख कर वो दुखी हो गई.

उसे याद था कि लड़के ने एक बार शुरुआत में उसे बताया था कि वो थोड़ी बहुत सिगरेट ले लिया करता है लेकिन जल्द ही छोड़ देगा. पर अब जो हो रहा था वो 'बहुत ज्यादा' था. लड़का स्मोकिंग, ड्रिंकिंग, तंबाकू, मसाला सभी लेता था और खूब लेता था.
हाँ, शराब रोज नही थी बाकी सब रोज था और बहुत था. इससे उस लड़की को धक्का लगा लेकिन प्यार में बुराई भी स्वीकारनी होती ही है इसलिए उसने सब अपना लिया लेकिन ये कम न हुआ बढ़ता ही गया. एक दिन वो भी आया जब लड़का नशे में उससे मिला और जब लड़की ने उसे नशा छोड़ने के बारे में कहा तो उसने, चीखते हुए लड़की को कहा, मैंने कभी अपने बाप की नहीं सुनी, भूल जाओ कि तुम्हारी सुनूंगा.
इस बात पर लड़की हैरान हुई. इसके बाद कई बार ऐसा हुआ. लड़का लगातार इन सभी चीजों में लिप्त रहने लगा. उसका तर्क था कि दुनिया में कई अच्छे लोग हैं जो ये सब करते हैं और ये उसकी पसंद थी, उसका स्पेस जहाँ उसे दखल नहीं देना चाहिए वरना रहना है तो रहो, नही तो जाओ.

इन रोज होती घटनाओं के बाद लड़की एक बार फिर टूट गई. साल से ज्यादा समय बीत चूका था लेकिन वो लड़का नहीं बदला बल्कि उसका चीखना, चिल्लाना सार्वजनिक रूप से हो गया था. वो लड़की को प्रेम बंद कमरे में करता लेकिन उसकी बेज्ज़ती सरे-बाज़ार, सब के सामने और इन सभी हरकतों के बाद भी वो लड़का खुद को खुले-विचारों, समाज-सुधारक, स्त्री-पक्षधर कहता था.

लड़की उदास रहने लगी, अपने कमरे में बाद वो कहीं किसी से नही मिलती थी और जाए भी कहां, अपना कहने के लिए जो था उसका वो भी अपने ऑफिस, दोस्तों में इतना उलझा रहता कि जब लड़की कहती तब आता और आने पर भी एहसान जता जाता था. अगर कभी उसके पास ज्यादा समय के लिए रुक जाता तो उसे इस बात का एहसास जरुर दिलाता कि देखो आज मैंने तुम्हें अधिक समय दिया इसलिए अब आगे कुछ न कहना...

लड़की घुटती जा रही थी. एक तरफ उसको आर्थिक रूप से तनाव होता तो दूसरी तरफ रोजमर्रा की जरूरतों के लिए न चाहते हुए भी लड़के पर निर्भर रहना पड़ता. लड़की बहुत स्वाभिमानी है, कभी अपनी माँ के आगे उसने हाथ नहीं फैलाया था लेकिन हाय रे ....उसकी किस्मत प्यार भी मिला तो ऐसा जो उसे सुख न दे पाया.

लड़के ने शादी का प्रस्ताव तो रखा लेकिन वो दिन अब तक नही आया. लड़की जब भी शादी की बात करती, लड़का या तो झल्ला जाता या अपनी मजबूरियों को गिनाने लगता. इस बार तो उसके पास लड़की की जाति को लेकर भी मज़बूरी थी. जिसकी वजह से उसे इंतज़ार करना था वरना घरेलू महाभारत होने का डर था.
लड़का संकीर्ण और रुणीवादी सोच वाले परिवार का था. जहाँ न उसके शौकों के बारे में किसी को पता था न ही उसके प्रेम के बारे में.

लेकिन वो जब कभी भी शादी की बात टालता, लड़की सोचती कि क्यों नही अपने परिवार को अपने शौकों के बारे में बता देता ताकि उन्हें भी तो इस बात का पता चले की महाभारत का असल मुद्दा शादी नहीं बल्कि लड़के के शौक हैं. पर नहीं, यहाँ लड़का हर बार शादी को टालता जाता और लड़की अपनी इच्छाओं को मारती जाती.

अब जो समय है उसमें लड़की बीच दोराहे पर खड़ी है और समझ नही पा रही कि क्या करें? वो प्यार को खोना भी नही चाहती लेकिन उसके साथ रह भी  नही पा रही है. बहुत लम्बा समय बीत चूका है उसे हालातों से लड़ते-लड़ते और वो हर दिन इस आस में बिता देती है कि शायद अब...अब वो लड़का उसे वो दे सके जिसके लिए सब छोड़ कर उसके पास आ गई.

असुविधाएं इतनी जटिल और खर्चीली हैं कि वो सोचती है कि ये करू तो आज कटेगा...या ये रहने दूँ तो कल कट जायेगा. अपनी उम्मीदों मरते देखना कैसा होता है....ये लड़की एहसास कराती है हर दिन. इन मरती इच्छाओं का क्या कोई अमरत्व नहीं!

सिर्फ थोड़े प्रेम के लिए, ऐसे ही कब तक, कैसे गुजारेगी ये लड़की अपनी ....ज़िन्दगी रोजाना.

1 comment:

  1. शूरू से अंत तक gripping ! बहुत अच्छा लिखती हैं आप ... अमृता जी की तरह।

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